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वैदिक गणित कई प्राचीन भारतीय गणितीय तकनीकों का संक्षेप है जो गति से गणना करने में मदद कर सकते हैं।
Thu Nov 9, 2023
पेश है भारतीय वैदिक गणित अकादमी (आईवीएमए), दस असाधारण वैदिक गणित युक्तियों के साथ आपके गणना कौशल को बढ़ाने का अंतिम समाधान! क्या आप पारंपरिक, समय लेने वाली विधियों से थक गए हैं? हमारी क्रांतिकारी वैदिक गणित तकनीकों के साथ थकाऊ गणनाओं को अलविदा कहें और बिजली की तेजी से मानसिक गणित को नमस्कार करें।
आपको 14 को 15 से गुणा करना है।
पहले, 14 को 1 के साथ जोड़ें:
14 + 1 = 15
अब, 15 को 14 के साथ गुणा करें:
15 × 14 = 210
इस प्रकार, आपने 14 को 15 से गुणा किया, इस ट्रिक का उपयोग करके।
ट्रिक "एकाधिकेन पूर्वेण" का उपयोग संख्या मूल्यों को गुणन करने में सरलता और गति देने के लिए किया जा सकता है, और इसे विभिन्न प्रकार के गणनाओं के लिए उपयोगी माना जाता है।
2. निकट संख्या (Nikhilam Navatashcaramam Dashatah):
2. अब, आपको दोनों संख्याओं को एक दूसरे के गुणक के रूप में लिखना होता है:
12 8
96
उन संख्याओं के वर्ग को निकालें और इन्हें एक साथ जोड़ें:
12^2 + 8^2 = 144 + 64 = 208
इस प्रकार, आपका उत्तर 208 होता है, जिसे आपने 12 को 8 से गुणा करके प्राप्त किया है।
इस नियम का उपयोग करते समय, आपको निम्नलिखित चरणों का पालन करना होता है:
आपको 13 को 17 से गुणा करना है.
1. पहले, आप गुणफल की दो संख्याओं को एक तालिका में लिखें:
13 17
2. अब, आपको दोनों संख्याओं को एक दूसरे के साथ लिखना होता है, विशेष रूप से उनके अंतर के साथ:
13 17
4
3. उन संख्याओं के वर्ग को निकालना होता है:
13^2 = 169
17^2 = 289
4. अंत में, आपको वर्ग के बीच के योगफल को प्राप्त करना होता है:
169 + 289 = 458
इस प्रकार, आपका उत्तर 458 होता है, जिसे आपने 13 को 17 से गुणा करके प्राप्त किया है।
"अनुरूप्ये सून्यमान्यत्" एक वैदिक गणित का नियम है, जिसका उपयोग व्यावासिक गणनाओं में किया जाता है। इस नियम का अर्थ होता है "यदि किसी दो संख्याओं के बीच अनुपात होता है, तो उनका अंतर सून्य होता है"। इस नियम का मुख्य उपयोग भिन्न-भिन्न प्रमाणों के बीच के संख्यागणना के लिए होता है।
इस नियम का उपयोग एक साधारण उदाहरण के साथ समझते हैं:
उदाहरण:
दो संख्याएँ A और B हैं, और हमें उनका अनुपात ढूंढना है, जिसके बाद वे एक दूसरे के बराबर होते हैं।
1. सबसे पहले, हम दो संख्याओं A और B के बीच का अनुपात निकालते हैं:
अनुपात = A / B
2. अगर यह अनुपात सून्य (0) होता है, तो यह दिखाता है कि दो संख्याएँ बराबर हैं:
अगर अनुपात = 0, तो A = B
यह नियम आंकड़ों और अनुपातों के माध्यम से अनुसंधान करने के लिए उपयोगी होता है, विशेष रूप से गणितीय समस्याओं को हल करने में।
"द्वंद्व योजन" एक वैदिक गणित की एक तकनीक है जिसका उपयोग बड़ी संख्या से छोटी संख्या को गुणन करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक का उपयोग विशेष रूप से जब दोनों संख्याएं बहुत करीब हैं, और एक संख्या को दूसरी संख्या से गुणन करना होता है, किया जाता है।
द्वंद्व योजन का उपयोग निम्नलिखित तरीके से किया जाता है:
1. पहले, आपको गुणफल की दो संख्याओं को एक तालिका में लिखें:उदाहरण के लिए, आपको 98 को 102 से गुणा करना है:
98 102
2. अब, आपको दोनों संख्याओं के बीच का अंतर निकालें:
102 - 98 = 4
3. अंत में, आपको यह अंतर पहली संख्या के साथ जोड़ना होता है:
98 + 4 = 102
इस प्रकार, आपके द्वारा गुणित उत्तर 102 होता है, जिसे आपने 98 को 102 से गुणा करके प्राप्त किया है।इस तकनीक का उपयोग अंकगणना को सरल बनाने के लिए किया जा सकता है, विशेष रूप से जब संख्याएं आपस में करीब होती हैं और आपको उन्हें बिना जवाब तालिका में लिखे गुणन करना होता है।
"एकाधिकेन पूर्वेण" एक वैदिक गणित ट्रिक है, जिसका उपयोग गुणन करते समय किया जाता है। इस ट्रिक का उपयोग दो संख्याओं का गुणने में किया जाता है, जब आपको एक संख्या को दूसरी संख्या से गुणा करना होता है।
ट्रिक का नाम "एकाधिकेन पूर्वेण" है, और इसका अर्थ होता है "एक को अधिक के साथ"। यानी, आपको पहले एक संख्या को एक से अधिक (एक या ज्यादा) के साथ जोड़ना होता है, और उसके बाद उसे दूसरी संख्या के साथ गुणा करना होता है।
उदाहरण देखें:
उदाहरण :
आपको 14 को 15 से गुणा करना है।
1. पहले, 14 को 1 के साथ जोड़ें:
14 + 1 = 15
2. अब, 15 को 15 के साथ गुणा करें:
15 × 15 = 225
इस प्रकार, आपने 14 को 15 से गुणा किया, इस ट्रिक का उपयोग करके।
ट्रिक "एकाधिकेन पूर्वेण" का उपयोग संख्या मूल्यों को गुणन करने में सरलता और गति देने के लिए किया जा सकता है, और इसे विभिन्न प्रकार के गणनाओं के लिए उपयोगी माना जाता है।
"पूरक संख्या (Puranapuranabhyam)" एक वेदिक गणित सूत्र (formula) है जिसका उपयोग गुणन के लिए किया जाता है। इस तकनीक का उपयोग दो संख्याओं के बीच गुणन करते समय किया जाता है, जब एक संख्या में पुराने संख्यांश होते हैं और दूसरी संख्या में उन संख्यांशों के बिना होती है।इस तकनीक का उपयोग करते समय निम्नलिखित चरणों का पालन करना होता है:
9. प्राप्ति सुम्हु करण (Sopaantaram):
निश्चित रूप से, यहां "प्राप्ति सुमु करण" या "सोपंतरम" विधि पर थोड़ी अधिक जानकारी दी गई है:
यह तकनीक विशेष रूप से तब सहायक होती है जब उन संख्याओं के साथ काम किया जाता है जो 10, 100, 1000 इत्यादि के पूर्णांक गुणजों के करीब होती हैं। यह गुणन प्रक्रिया को छोटे, अधिक प्रबंधनीय भागों में तोड़कर सरल बनाता है, जिससे मानसिक गणना तेज और अधिक कुशल हो जाती है।
विधि को प्रदर्शित करने के लिए यहां एक और उदाहरण दिया गया है:
मान लीजिए कि आप 97 को 103 से गुणा करना चाहते हैं:
1. एक सामान्य आधार चुनें, जो इस मामले में 100 हो सकता है।
2. विचलन निर्धारित करें:
97, 100 से 3 कम है (100 - 97 = 3)।
103, 100 से 3 अधिक है (103 - 100 = 3)।3. विचलनों को गुणा करें: 3 × 3 = 9.
10. वर्गमूल योजन (Vargamoola):
"वर्गमूल" (Vargamoola) गणना तकनीक का एक हिस्सा है जो वैदिक गणित (Vedic Mathematics) में प्रमुख भूमिका निभाता है। वैदिक गणित एक प्राचीन भारतीय गणना प्रणाली है जो भारतीय गणना शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों से लिया गया है और विभिन्न गणितिय समस्याओं को आसानी से हल करने के लिए उपयोग किया जाता है।
"वर्गमूल" एक गणना तकनीक है जिसमें वर्ग की जगह पर उसके वर्गमूल का उपयोग किया जाता है। यह तकनीक द्विसंख्याओं के गुणन और विभाजन के लिए बड़े संख्याओं को सरलता से हल करने में मदद करती है। इसे विशेष रूप से गणना की गति बढ़ाने और गणना को समझने में मदद करने के लिए सीखने के लिए बच्चों और छात्रों के लिए प्राचीन गणना तकनीक का उपयोग करने का प्रयास किया जाता है।
वर्गमूल का उपयोग विभिन्न प्रकार की गणना में किया जा सकता है, और यह गणितीय गणना को अधिक सरल और तेजी से बना सकता है।
IVMA: Indian Vedic Maths Academy
UNLOCK THE SECRETS OF VEDIC MATHS